“शौचालय” या “टॉयलेट” शब्द सुनकर अक्सर लोग नाक-भौं सिकोड़ते हैं, लेकिन सच तो यह है कि किसी भी समाज के स्वास्थ्य, गरिमा और विकास की नींव यही शौचालय हैं। 2014 में शुरू हुए ऐतिहासिक स्वच्छ भारत अभियान (SBM) ने देश में शौचालय निर्माण और खुले में शौच मुक्ति (ODF) में एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की। अब, इसी सफलता को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने एक नए लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया है: शौचालय 2025।
यह कोई नया अलग स्कीम नहीं है, बल्कि स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के दूसरे चरण (SBM-U 2.0) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और लक्ष्य है, जिसे 2021 में शुरू किया गया था और जिसका लक्ष्य 2025-26 तक पूरा करना है।
शौचालय 2025 का मुख्य फोकस: केवल निर्माण नहीं, स्थिरता है जरूरी
पहले चरण का मुख्य उद्देश्य देश को ODF बनाना था, और इसमें भारत ने सफलता पाई। लेकिन अब चुनौती सिर्फ शौचालय का निर्माण करने की नहीं, बल्कि उन्हें फंक्शनल, टिकाऊ और प्रभावी बनाए रखने की है। शौचालय 2025 का विजन इसी ‘ओडीएफ प्लस’ स्टेटस को हासिल करना है, जिसके मुख्य आयाम इस प्रकार हैं:
1. ODF की स्थिरता (Sustainability of ODF): यह सुनिश्चित करना कि बनाए गए शौचालय लगातार इस्तेमाल हो रहे हैं और उनकी टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों में व्यवहार परिवर्तन को और मजबूत करना इसका प्रमुख लक्ष्य है।
2. मल कीचड़ प्रबंधन (Faecal Sludge Management – FSM): यह शौचालय 2025 का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सिर्फ शौचालय बना देने से काम नहीं चलता। सेप्टिक टैंक और गड्ढों से निकलने वाले मल कीचड़ के सुरक्षित निकासी, परिवहन, उपचार और निपटान की एक वैज्ञानिक व्यवस्था होनी चाहिए। इसके बिना गंदगी और प्रदूषण सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह shift होता है, जो भूजल और पर्यावरण को दूषित करता है।
3. वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट (Wastewater Treatment): शहरी क्षेत्रों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) का निर्माण और मौजूदा प्लांट्स का उन्नयन करना ताकि गंदे पानी को नदियों और जलस्रोतों में जाने से पहले ही शुद्ध किया जा सके।
4. कचरा मुक्त शहर (Garbage Free Cities – GFC): शौचालय प्रबंधन के साथ-साथ ठोस कचरा प्रबंधन (Solid Waste Management) पर भी जोर दिया जा रहा है ताकि शहर पूरी तरह से स्वच्छ और कचरा मुक्त बन सकें।
इस योजना के लाभ
· सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार: हैजा, डायरिया, टाइफाइड, हेपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियों पर अंकुश लगेगा, जिससे शिशु मृत्यु दर कम होगी और लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा।
· पर्यावरण संरक्षण: वैज्ञानिक तरीके से मल और wastewater के प्रबंधन से जमीन और पानी के स्रोत प्रदूषित नहीं होंगे। ट्रीट किए गए पानी का इस्तेमाल सिंचाई आदि में भी किया जा सकता है।
· महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा: शौचालय की उपलब्धता महिलाओं और लड़कियों को खुले में शौच के लिए जाने से होने वाली शर्मिंदगी और सुरक्षा खतरों से बचाती है। इससे उनकी गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
· आर्थिक लाभ: एक स्वच्छ वातावरण पर्यटन को बढ़ावा देता है और लोगों के Medical expenses कम करके देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है।
चुनौतियाँ और राह आगे
इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
· लोगों में जागरूकता की कमी: अभी भी कई जगहों पर लोग शौचालय के इस्तेमाल की जगह खुले में शौच को तरजीह देते हैं।
· तकनीकी और वित्तीय संसाधन: छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में FSM और सीवेज ट्रीटमेंट के लिए बुनियादी ढाँचा खड़ा करना एक बड़ी technical और financial चुनौती है।
· सामुदायिक भागीदारी: इसे सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि एक जन आंदोलन बनाने की जरूरत है। हर नागरिक को जिम्मेदारी लेनी होगी।
निष्कर्ष:
शौचालय 2025 भारत की स्वच्छता यात्रा में एक नया, जरूरी और वैज्ञानिक अध्याय है। यह हमें याद दिलाता है कि शौचालय का निर्माण अंत नहीं, बल्कि एक शुरुआत है। एक स्वच्छ, स्वस्थ और समृद्ध भारत के सपने को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि हम सब मिलकर इस मिशन को सफल बनाएं। यह सिर्फ सरकार का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने आस-पास स्वच्छता बनाए रखे और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का सम्मान करे।